Monday, February 20, 2012

क्या वो वाकई हम दोनों ही थे जानां !


पिछले कई दिनों से एक ही बात दिल में समायी हुई है बस और कुछ सोच में नहीं आता है.
 
वो बसेरा; जिसमे हम अक्सर रुका करते थे और नदी के बीच स्थित वो पत्थर जो हमारे की खिडकी /बरामदे से दिखाई देता था.
 
और वो बहती नदी - जो कभी भी आँखों से ओझल नहीं हुई, चाहे वो दिन हो या रात , चाहे वो सुबह हो या शाम .

क्या जगह थी !!!
क्या जिंदगी थी !!!!
 
क्या वो वाकई हम दोनों ही थे जानां !