भीगा सा दिन,
भीगी सी आँखें,
भीगा सा मन ,
और भीगी सी रात है !
कुछ पुराने ख़त ,
एक तेरा चेहरा,
और कुछ तेरी बात है !
ऐसे ही कई टुकड़ा टुकड़ा दिन
और कई
टुकड़ा टुकड़ा राते
हमने ज़िन्दगी की साँसों तले काटी थी !
न दिन रहे और न राते,
न ज़िन्दगी रही और न तेरी बाते !
कोई खुदा से जाकर कह तो दे,
मुझे उसकी कायनात पर अब भरोसा न रहा !
नज़्म ©
विजय कुमार