Saturday, October 16, 2010



कल अचानक ही एक याद ने रास्ता रोक लिया
कहने लगी ...मुझे भूल गए ? कैसे ?
मैं तो तुम्हारी सबसे बड़ी निधि हूँ मेरे दोस्त !!!

मैंने देखा तो उस याद पर वक़्त की धुल और दुनिया के जाले ,
दोनों ने अपनी शिकस्त जमाई हुई थी ;
मैंने अपने आंसुओ से उस याद को साफ़ किया तो देखा की ;
तुम थी उस याद में ,

मेरे साथ , एक अजनबी शहर में ; मेरे बांहों में ;
कुल जहान की खुशियाँ समेटे हुए ;
और भी कुछ था
 देखा तो एक मौन था ,  
कुछ आंसू थे ,  
उखड़ी हुई साँसे थी
मेरा नाम था और सुनो जांना ,  
तुम्हारा भी नाम था ......

हम मिले और जुदा हो गए ....
शायद फिर मिलने के लिए ....
शायद फिर जुदा होने के लिए..

ज़िन्दगी की परिभाषा ,जैसे हम सोचते है .....
वैसी नहीं है .......
प्रेम बलिदान मांगता है और हम दे रहे है .....

कितनी बातें थी ..कितनी यादें थी ....
मैं निशब्द हूँ और मेरी आँखे ही सब कुछ कह रही है ....
बहुत कुछ ..शब्दों से परे ...
मौन के काल-पट  पर ,आंसुओं से लिखते हुए ..
सुनो जांना , क्या तुम्हारे भी आंसू बह रहे है 

तुम्हारा नाम जानां है ...


रात की तन्हाई में जब तुम 
गहरी साँसे लेती हुई सो रही होती हो...
तो क्या तुम्हे पता होता है की 
मैं तुम्हे देख रहा हूँ ...
तुम्हारी पीठ के पीछे से ...
तुम्हे छूते हुए ...
अपने अधरों से तुम्हे अपना परिचय देते हुए...
मैं तुम्हे अपना नाम बताता हूँ...

जब मैं जीना जीना  उतरता हूँ ,  
सपनो के शहर में किसी एक कमरे के भीतर ..
किसी गहरे प्रेम के तहखानों में 
तुम्हारी आवाज की गूँज सुनाई देती है
जहाँ तुम होती हो अपनी बाहों को फैलाये हुए .. 
मेरा स्वागत करते हुए ..
क्योंकि मैं अनजान से देश से आया हूँ
तुम्हे ..तुमसे मिलाने के लिए ... 

क्या मेरे अधर तुम्हे मेरा परिचय नहीं देते या 
तुम्हे तुम्हारा नाम नहीं बताते..........
तुम्हारा नाम जानां है ...


रूह तेरे नाम


अक्सर सुर्ख शामो को तेरी याद आती है
और मुझे झुलसा जाती है ;
मैं अंगारों पर लेटता हूँ और फिर
तेरी जुल्फें मुझे अपने ठंडे आगोश में ले लेती है .....

मैं तुझे देखता हूँ और मुझे एक यकीन होता है कि;
यहाँ तू है , ये जहाँ है , रब है और मैं हूँ ....
मुझे अपने प्यार पर रश्क है मेरे दोस्त.....
देखना इसे किसी कि नज़र न लग जायें.... 

तेरा और अब हर जनम सिर्फ तेरा ...
इस जिस्म पर किसी और का नाम होंगा ;
पर रूह तो तेरे नाम कर दिया है जांना !!

" एक अँधेरी सुरंग के अहसास "



जब भी मैं अपने सफ़र को देखता हूँ तो
कुछ और नजर नहीं आता दूर दूर तक ......
ज़िन्दगी अब एक लम्बी सुरंग हो चुकी है ....

जिसकी सीमा  के पार कुछ नज़र नहीं आ रहा है ...
कहीं ; कोई रौशनी का दिया नहीं  है
मैं तेरा हाथ पकड़कर चल रहा हूँ ..
अनवरत ....किसी अनंत की ओर .....
जहाँ ,किसी आखरी छोर पर ;  हमें कोई खुदा मिले
और अपनी खुली हुई बाहों से हमारा स्वागत करे.... 

मैं अक्सर नर्म अँधेरे में तेरा चेहरा थाम लेता हूँ
और फिर हौले से तेरा नाम लेता हूँ
तुझे मालूम होता है कि , मैं कहाँ हूँ 
तू मुझे और मैं तुझे छु लेते है ........
मैं चंद साँसे और ले लेता हूँ
कुछ पल और जी लेता हूँ ...
.....इस सफ़र के लिए ... तेरे लिये !!!

अक्सर रास्ते के कुछ अनजाने मोड़ पर
तुम रो लेती हो जार जार ....
मैं तुम्हारे आंसुओ को छु लेता हूँ.....
जो कि ; जन्मो के दुःख लिए होते है
और कहता हूँ कि; 
एक दिन इस रात की सुबह होंगी !
तुम ये सुन कर और रोती हो
क्योंकि जिस सुरंग में हम चल रहें है
वो अक्सर नाखतम सी सुरंगे होती है ...

मुझे याद आता है कि ;
ज़िन्दगी के जिस मोड़ पर हम मिले थे
वो एक ढलती हुई शाम थी
वहां कुछ रौशनी थी ,
मैंने डूबते हुए सूरज से आँख-मिचौली की
और तुझे आँख भर कर देख लिया ...
और तुझे चाह लिया ; सच किसी खुदा कि कसम !!!
और तुझे 'तेरे' ईश्वर से इस उम्र के लिये मांग लिया !!!

तुझे मालुम न था कि इस चाह  की सुरंग 
इतनी लम्बी होंगी 
मुझे यकीन न था कि मैं तेरे संग
इसे पार  न कर पाऊंगा 
पर हम तो किस्मत के मारे है ...

कुछ मेरा यकीन , कुछ तेरी चाह्त ,  
कुछ मेरी चाहत और तेरा यकीन
हम सफ़र पर निकल पड़े  .......
ज़िन्दगी की इस सुरंग में चल पड़े ...
और सफ़र अभी भी जारी है........
जारी है ना मेरी 'जांना' !!!

बस ... और क्या कहूँ ....


सावन की दस्तक .....
दे रही है हवायें
कहीं बिजली है चमक  रही ...
कही बादल  है गूँज  रहे ...
ऐसे में मुझे तुम याद आ रहे हो ..

तुम कहाँ और मैं कहाँ
तनहाइयों में आग लगा रही है
ये मौसम और हमारी विवशता .......

जांना , तुम आ जाओ और 
मेरी बाहों में समां जाओ ...
मेरे लब तरस रहे है तेरे अधरों के लिये....
बस ... और क्या कहूँ ....

जानू की ये प्रेम है..


क्या तुम परछाईयों के देश से आयी हो
क्या तुम प्रेम की परछाई हो
क्या तुम मेरा प्रेम हो
क्या तुम "मैं " हो ...............

जीवन के इस उतारार्ध में ;
तुमने कैसी है ये ज्योत जगायी
की सारे के सारे उजाले इस ज्योत के आगे फीके है ..
नगण्य है ...क्षीण है ..अँधेरे है ...

क्या ये प्रेम की ज्योत है
क्या ये समर्पण है ..
क्या ये आधार है ....
मुझे तुम अपनी साँसों में मिला दो
तो जानू की ये प्रेम है
मुझे तुम अपनी राहो में बिछा दो
तो जानू की ये प्रेम है
मुझे तुम अपने आप में समा लो
तो जानू की ये प्रेम है..

कहीं तेरा नाम ,मैं तो नहीं ..........




क्या कहे और क्या न कहे ....
जीवन अब शब्दों का खेल बन गया है
मैं मुझमे ही अपने अक्स को ढूंढता हूँ
किसी मोड़ पर छुटे हुए साये को तलाशता हूँ मैं .....

शायद अब तेरे दिल के किसी अँधेरे कोने में रहता हूँ
बाते अब अहसास बन गये है ............
साँसे अब जीवन के चिन्ह बन गये है ......
इनके निशान अब तेरे वजूद में तैरते हैं ....
कहीं तेरा नाम ,मैं तो नहीं ..........

मन के शहर में


मन के शहर में तेरा इन्तजार है .....

ये वही शहर है ....
जहाँ मैं तेरे आगोश में खुद को खो बैठा था

आसमान से कोई एक हाथ
जमीन पर उतर कर तुम्हारे माथे
पर मेरा नाम लिख गया

सपनो की साँसे तेरा नाम लेकर धड़कती रही
चांदनी रात भर शबनम की बूंदे तेरे लबो पर छिड़कती रही
कोई टूटे हुए तारो के संग तेरा नाम लेता रहा ..

मैं तुझे ,बस तुझे देखता रहा ....

यूँ ही ..मैं अब अपने मन के शहर में
तेरा इन्तजार कर रहा हूँ .

ज़िन्दगी


ज़िन्दगी वहीँ रुकी हुई है ;  
जहाँ से शुरू हुई थी ..
तुम्हे सोचकर ......
तुम्हे लेकर .....
तुमसे मिलकर .............!!!

और जिस प्यास का जन्म हुआ है 
वो अब इस जन्म में नहीं पूरी होने वाली
चाहे वो तुम्हे देखने कि प्यास हो ...
चाहे वो तुम्हे छूने कि प्यास हो .....
चाहे वो तुमसे बाते करने कि प्यास हो ....
चाहे वो फिर तुम्हे पाने कि प्यास हो ....
इस जीवन में मैं तुमसे 
अपनी ये सारी प्यास नहीं बुझा सकता हूँ ....
और मुझे इस बात का बहुत दुःख है ....
बहुत ज्यादा दुःख है ....

ज़िन्दगी तो कभी भी रुक नहीं पाती है ....
चाहे वो फिर तुम्हारे साथ जीना हो 
या फिर मेरे सपनो के साथ जीना
वक़्त कि अपनी रफ़्तार होती है 
और हम इस रफ़्तार से बंधे हुए है ....

तुम्हारी साँसे तुम कब मेरे नाम करोंगी ..
अपनी साँसे कब मैं तुमसे बाटूंगा .....
इन सब लम्हों के जज्बात और 
ऐसे कई और भी frozen moments  मैं जीना चाहता हूँ ..

इन्द्रधनुष के सप्तरंगो में मैं तुम्हे समाना चाहता हूँ
तुम्हे मेरी मोहब्बत का कौनसा रंग पसंद है जांना

हाँ प्यार करने के लिए जांना ..


अक्सर
मैं यूँ ही जीवन की राह में थककर
पीछे मुड़कर देखना चाहता हूँ कि 
क्या तुम हो मेरे पीछे

जैसे कि तुम होती हों ,मेरे साथ ;
अक्सर दुनिया के छोटे छोटे शहरो की 
बड़ी सी गलियों में मेरे साथ सफ़र करती  हुई ....
मुझे मुस्कराकर देखती हुई ...और मेरा हाथ थामती हुई .....
सच , मुझे यूँ लगता है की सारी उम्र तेरे संग चलूँ....

पर अक्सर जब मुड़कर देखता हूँ तो पाता हूँ की तुम नहीं  हो ...
कही भी नहीं हो ...
बस तुम्हारा अहसास है ..

तुम्हारा कोई पल  , मेरे संग , मेरा साया बना हुआ होता है ...
बस तुम्हारी स्निग्ध मुस्कराहट होती है जो
मुझे कहती है की
हाँ तुम हो ; मेरे साथ इस जाने अनजाने सफ़र में.....

जीवन एक नीरस सा सफ़र था , जिसे तुमने अपनी आग से जला दिया है
आसमान अब सुर्ख रंगों से रंगा हुआ है ....
रात अब कुछ और गहरी हो चुकी होती है .
दिन कैसे ढल जाते है
उम्र के पढाव बिना रुके गुजर जाते है ....

कौन तू , कौन मैं ... रिश्ते कैसे बन जाते है
ये तेरा -मेरा से सफ़र अब हम पर ख़त्म हुआ जो है ...
क्या तुम हो ....
इस सफ़र में मेरी हमसफ़र बनकर जलने के लिए
जीने के लिए ..मरने  के लिए .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....
हाँ प्यार करने के लिए जांना .....

" तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ..."



एक सपने में एक आधी -अधूरी आस जगी
कहीं किसी खेत में सरसों की उवास चली
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे साँसों में तेरी सांस कैसे चली ....
आसमान से एक बादल का टुकडा टुटा
तेरे नाम से उसने मेरा पता पुछा
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे तन से तेरी खुशबू कैसे छूटी.......
मिटटी की गंध ने तेरे घर का पता दिया
मेघो ने तेरे आंसुओ पर मेरा नाम लिखा
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे लबो पर तेरे होंठो की ये मुहर कैसी ..
सूरज की किरणों ने एक  जाल बुना
चाँद ने उस पर सितारों की झालर बिछाई
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...

मेरे साये की तस्वीर में तेरा रंग ये कैसा...
कि एक बैचेनी सी आँखों में है छायी ..
कि मन ने कहा , तू बहुत उदास है
तुमने मुझे पुकारा तो नहीं जांना ...
कि मैं भी तुझे याद किया है......




आओ तुम्हे मैं कहीं जंगलो में ले चलूं
जहाँ इंसान न रहते हो
आओ तुम्हे मैं कहीं पर्वतो पर ले चलूं
जहाँ रस्मे न बसती हो
आओ तुम्हे मैं ऐसी दुनिया में ले चलूं
जहाँ कोई और न हो................



तुम से लेकर मैं तक
बस तुम ही रहो या मैं ही रहूँ  
या हम दोनों ही रहे

मैं तेरे संग अपनी ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ


मैं बूँद बूँद ज़िन्दगी जी रहा हूँ तेरे आगोश में ..
मैं बूँद बूँद ज़िन्दगी पी रहा हूँ तेरे होंठों से ....

......बस फर्क इतना ही है की
एक बूँद से दूसरी बूँद का सफ़र तय करने में
एक जीवन लग जाता है ....

तेरे जीवन से मेरे जीवन के ;
दरमियान जो सीढ़ी है
और उसे जिस खुदा ने बनाया ..
उस से जरा तू पूछ तो
कि क्या किसी दिन ;
ये दोनों जीवन एक हो पायेंगे
क्या साथ जी न सके ;
तो क्या साथ मर सकेंगे...

ये कैसे पत्थर के जीवन के साथ बंदे हुए है 
हम दोनों ..
मैं तुझसे बेइंतहा प्यार करता हूँ.....
और मेरा जुर्म शायद यही है ....

मैं तेरे संग अपनी ज़िन्दगी जीना चाहता हूँ 



ज़िन्दगी के कई बरस बीत जायेंगे .. 
इन आँखों के आंसू सूख जायेंगे
जब तुम मुझ संग मिलोंगी 
तब तक हम तरस कर मर जायेंगे......

टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी


चलो ,
इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,
जो कभी तेरा लिबास बन जाए ।
कभी मेरा लिबास बन जाए ।
और जब वक्त की धूप
हमारे सर पर आए ,
तो ये चादर हम दोनों का सरमाया बन जाए ।

चलो ,इस टुकडा -टुकडा ज़िन्दगी को जोड़ कर ,
एक चादर सी लें ।
एक चादर ,जिसे ओढ़ कर हम
अपनी सपनों की दुनिया में खो जायें ।
जहाँ .......
एक शांत बहती नदी हो ।
जहाँ ...........
पुराने मन्दिर हों ।
जहाँ चाँद -तारों भरा आकाश हो ।
और जब मैं नींद से जागूँ ,
तो तू मेरे पास हो ।

जीवंत स्वपन


आज अचानक ही मेघ का एक टुकडा
जो की ज़िन्दगी से बड़ा था
मुझ पर मेहरबान हो गया
तुम्हे चेहरे पर से वो हट गया
जब वो नजरो के सामने से हटा तो
तुम थी सामने
तुम्हारी आँखे मुझे ;
किसी परियो के देश में ले जाने के लिए तैयार थी
तुम्हारे अधर मुझे एक मौन आमंत्रण दे रहे थे
और तुम मुझे अपने आगोश में लेने के लिए तैयार थी 

क्या ये स्वपन है या ....

तुम्हारा ये प्रेम का रंग मुझे अपने आप में समां लेंगा
मैं अपने साँसों से पूछ रहा हूँ की क्यों वो तेरा नाम ले रही है ....
सुनो मिलन का नशा छा रहा है मुझ पर
आकर मुझे अपनी बाहों में ले लो
अपने अधरों से मेरा स्वागत करो
और
हाँ
मुझे इस जीवंत स्वपन को जीने दो


मन की खिड़की


मन की खिड़की

वो एक अजीब सी रात थी ,
जो मेरे जीवन की आखरी रात भी थी !

ज़िन्दगी की बैचेनियों से ;
घबराकर ....और डरकर ...
मैंने मन की खिड़की से;
बाहर झाँका .........

बाहर ज़िन्दगी की बारिश जोरो से हो रही थी ..
वक़्त के तुफानो के साथ साथ किस्मत की आंधी भी थी.

सूखे हुए आँखों से देखा तो ;
दुनिया के किसी अँधेरे कोने में ,
चुपचाप बैठी हुई तुम थी !!!

घुटनों में अपना चेहरा छुपाये,
कांपती हुई ,और भीगती हुई .....
और;
मेरा नाम को अपने आंसुओ में जलाती हुई ......

मुझे देखकर कहा ;
सुनो .......
मैं बरसो से भीग रही हूँ ..
मैं तुम्हारे मन के भीतर आ जाऊं ?

मैंने मुड़कर मन की खिड़की से ;
झाँककर अपने भीतर देखा ...
मेरे मन की दुनिया ,
अपनी आखरी साँसे गिन रही थी ..
ज़िन्दगी बेजार सी थी
और वीरान थी ..
सब कुछ ख़तम सा हो गया था…..
मेरी सारी खुशियों को
ज़िन्दगी के अँधेरे निगल गए थे......

मेरी किस्मत को तेरा प्यार मंज़ूर नहीं था ,
मेरे खुदा को तेरा साथ का इकरार नहीं था ,
मैं हार चूका था ;
समय से !
ज़िन्दगी से !!
और खुदा से ...!!!

मैंने बड़े प्यार से ;
अपनी भीगी आँखों से तुम्हे देखा ;
बड़े हौले से तेरा नाम लिया ;
एक आखरी सांस ली ;
और
फिर मर गया ..................


The Window of my heart

It was a very strange night,
so strange and ruthless;
That I couldn’t recognize,
It as last night of my life....

such restless was my life ;
By traveling a long journey ,
That it made me Frightened and scared
Of the world around me;

On that night I looked out of
The window of my heart... .........

The rains of Life were very harsh;
There were the tornados of time ;
With unseen storms of fate ;
Making deafening sounds around me ….

My Dry eyes saw you at a distance…
You were so close to my heart and
Yet so far from my reach...
In a dark corner of the cruel world
you were sitting quietly!!!

Your face was hidden
In your knees;
you were trembling and
Getting drenched;
In the harsh rains of life.....
And;
You were burning my name in your tears ......

than suddenly;
You looked at me in a trance of happiness
You were pleading me...
Listen o’ my love
May I come inside your heart...?
I don’t want to stay here in this world…
Please let me come, inside you…

I turned away my face from you
And looked inside the window of my heart;
The world of my heart,
Was breathing its last few breaths ..
My life was destroyed and deserted…
everything was came to an end.....
All my happiness was gone...
the Darkness of death were swallowing my life ......

My destiny was not ready to accept your love
My God did not agree to unite me with you
I lost you to Time, Life and God;

With misty eyes,
I saw you o’ my great love ....
slowly I whispered your name ….
I Took one last breath;
and than I died..........

जन्मो का इन्तजार


जन्मो का इन्तजार
जब तक तुम न थी ....
प्यार की खबर न थी
ज़िन्दगी की प्यास न थी
कोई आरजू न थी
कोई इल्तजा न थी
कोई बंदगी न थी
कोई मोहब्बत न थी
क्योंकि तुम न थी..

फिर तुम मिली
जाना की ज़िन्दगी क्या है
मोहब्बत क्या है
तुम्हे पता है कई जन्मो की प्यास है ये ...
इस जन्म शायद ही बुझे....

ज़िन्दगी की एक शाख


ज़िन्दगी की एक शाख बहुत उदास थी ...
खुदा की उस पर कोई मेहरबानी नहीं थी ...
वो शाख बड़े से सुर्ख सूरज को अकेले ;
डूबते हुए देखती थी
वो शाख हर दिन उदासी से ढलती हुई ;
शामे देखती थी
वो शाख चाँद को बड़े खामोशी से ;
उगते हुए देखती थी
वो शाख सितारों की झिलमिलाहट की ;
चमक नहीं जी पाती थी ...

वो शाख सो नहीं पाती थी .. 
जाग नहीं पाती थी.......
 
उस शाख पर एक दिन एक करिश्मा हुआ
खुदा की मेहर ने एक नेमत दी उसे.......

उस शाख पर खुदा ने एक रिश्ता बनाया
मेरा और तेरा रिश्ता ..
हमारा रिश्ता ..

शाख अब गुले गुलज़ार है उम्मीदों  से , 
खुशियों से
और जीवन की पत्तियों से .....
इश्क की खुशबू से ....

सुनो ...तुम जी रही हो ,
मेरे संग उस शाख पर ..........

तुम्हारा नाम क्या है प्रेम.......


कोई गली जो तेरे घर पहुंचती हो ;
और जिस पर चलने में तेरा खुदा मेरी मदद करे ...
क्या तुझे मालूम है ?
मैं उम्र भर उस गली में चलना चाहता हूँ ....

सोचता हूँ अक्सर मैं ;
नर्म रातो के अंधेरो में की तू कहीं है , 
मेरे आसपास मुझे छूते हुए और मुझे प्यार करते हुए 
..और ये कहते हुए की ,मैं हूँ न.....

ये सोचता हूँ की तुम यहाँ होती तो ;
मुझे चूम लेती और मैं एक सपने में खो जाता , 
जहाँ तुम रहो और मैं रहूँ ...
एक ऐसा सपना ,जिसे खुदा ने बनाया हो ....

तुम्हारा नाम क्या है प्रेम.......

खुदा का रहम............


यूँ ही किसी  खुदा ने हमें मिला दिया है एक दूजे से ....
यूँ ही किसी खुदा का करम है हम पर .....
यूँ ही किसी खुदा का साया है हमारी मोहब्बत ....
यूँ ही किसी खुदा ने कुछ तो सोचा होंगा ....
क्या तुम उस खुदा को जानती हो जानां !!!
मैं उस से तुम्हे माँगना चाहता हूँ ..

After all  यूँ ही तो कुछ भी नहीं हुआ करता है ..
कोई खुदा तुझे मुझसे मिलाना चाहता है ....
आओ ,अब देर न करो ...खुदा का रहम है हम पर ...
यूँ ही किसी खुदा ने कुछ तो सोचा होंगा ....
क्या तुम उस खुदा को जानती हो जानां !!!
मैं उस से तुम्हे माँगना चाहता हूँ .....

जाने किस जनम से तुम्हारी राह देखता हुआ ;
तुम्हारा और सिर्फ तुम्हारा...


दास्ताँ............



कोई राह ऐसी होती जो ;
तुझ तलक जाकर ख़त्म होती
कोई दरवाजा ऐसा होता , 
जो तू खोले ; मेरे लिए
कोई घर ऐसा बना हो कहीं पर
जहाँ तू रहे और मैं रहूँ !

दुनिया के बंधन अब मुझे डसने लगे है
तेरी यादो के उजाले मुझे बुलाते है
तू खड़ी होती है कहीं ;
अपनी बाहों को फैलाए हुए ..
मुझे पुकारते हुए !

यूँ ही शायद  किसी रोज़ हम मर जायेंगे
फिर लोग कहा करेंगे ...

हाँ , बहुत प्यार करते थे दोनों.......
बड़ी अच्छी दास्ताँ थी यारो.............

तुम.....


तुम.....
किसी दुसरी ज़िन्दगी का एहसास हो ..
कुछ पराये सपनो की खुशबु हो ..
कोई पुरानी फरियाद हो ..
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी किताब में रखा कोई सूखा फूल हो
किसी गीत में रुका हुआ कोई अंतरा हो
किसी सड़क पर ठहरा हुआ कोई मोड़ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी अजनबी रिश्ते की आंच हो
किसी अनजानी धड़कन का नाम हो
किसी नदी में ठहरी हुई धारा हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...
किसी आंसू में रुखी हुई सिसकी हो
किसी खामोशी के जज्बात हो
किसी मोड़ पर छूटा हुआ हाथ हो
किस से कहूँ की तुम मेरे  हो ..
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ .....

तुम...  हां,  तुम ........
हां , मेरे अपने सपनो में तुम हो
हां,  मेरी आखरी फरियाद तुम हो
हां, मेरी अपनी ज़िन्दगी का एहसास हो ...
कोई तुम्हे कैसे भूल जाएँ कि तुम मेरे  हो ....

हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....
हां,  तुम मेरे  हो ....