आज अचानक ही मेघ का एक टुकडा 
जो की ज़िन्दगी से बड़ा था 
मुझ पर मेहरबान हो गया 
तुम्हे चेहरे पर से वो हट गया 
जब वो नजरो के सामने से हटा तो 
तुम थी सामने 
तुम्हारी आँखे मुझे ;
किसी परियो के देश में ले जाने के लिए तैयार थी 
तुम्हारे अधर मुझे एक मौन आमंत्रण दे रहे थे 
और तुम मुझे अपने आगोश में लेने के लिए तैयार थी 
क्या ये स्वपन है या ....
तुम्हारा ये प्रेम का रंग मुझे अपने आप में समां लेंगा  
मैं अपने साँसों से पूछ रहा हूँ की क्यों वो  तेरा नाम ले रही है ....
सुनो मिलन का नशा छा रहा है मुझ पर 
आकर मुझे अपनी बाहों में ले लो 
अपने अधरों से मेरा स्वागत करो 
और 
हाँ 
मुझे इस जीवंत स्वपन को जीने दो
 
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