Saturday, March 31, 2012

तुमसे मिलने की यात्रा....!!


मैं आज के दिन तुमसे ही मिलने निकल चला था जानां , एक नये शहर की ओर , जो कि तब तक के लिए मेरे लिए अजनबी था , जब तक कि मैं तुमसे उस शहर में नहीं मिला. तुमसे मिलने के बाद न तुम अजनबी रही और न ही वो शहर. ज़िन्दगी भी बड़ी अजीब है , जिनसे कभी न मिलना चाहे , उन्ही से जोड़े रखती है और जिनके संग रहना चाहे , उनसे दूर कर देती है . तुम पहली बार मुझसे मिल रही थी , लेकिन मुझे लग रहा था कि हम दोनों बरसो से ..नहीं नहीं शायद जन्मो से के दुसरे को जानते थे . और वही हुआ , जब हम मिले..... तुमसे मिलने की यात्रा में बहुत से ख्याल तैरते रहे जेहन में .. कि तुम कैसी होंगी , कैसी दिखती हो .तुम्हारे ख़त ने भी वही कहा था, मैं बहुत से अजनबियों से मिला हूँ ज़िन्दगी के सफ़र में , लेकिन तुमसे मिलना रोमांचक था,. रोमांटिक था. रहस्य में लिपटा हुआ था . जीवन की धडकनों से भरा हुआ था. हर अहसास में तुम ही थी ..सिर्फ तुम !!!


तेरे बिना ज़िन्दगी से शिकवा तो नहीं ....!



सोचता हूँ कि तुम्हारे मेरे ज़िन्दगी में न होने से सिर्फ दुःख और खालीपन ही है ,पर ज़िन्दगी तो चल ही रही है क्योंकि खुदा के बनाए हुए इस निजाम में कभी भी कुछ भी नहीं रुकता है . ज़िन्दगी चलती ही रहती है .. यदि सोचना भी चाहे तो भी नहीं रूकती , सिवाय इसके कि उसके ख़त्म होने का समय आ जाये . और कभी कभी ये भी सोचता हूँ कि खुदा की शायद यही रज़ा थी कि मैं तेरे बिना और तू मेरे बिना ही जिये . और एक दुसरे की यादो में तड़प कर जिये और मरे.... पर ज़िन्दगी का रंग भी चटक ही होता है ... क्योंकि जीना इसी का नाम है ! पर आज फिर तेरी याद बहुत आ रही है !