Friday, January 8, 2010

तेरा इन्तजार कर रहा हूँ ...

कोई ज़िन्दगी की एक खामोश पहर थी ..
जब; मैं तेरे आगोश में खुद को खो बैठा था !!!

आसमान से कोई एक हाथ
जमीन पर उतर कर तुम्हारे माथे
पर मेरा नाम लिख गया

सपनो की साँसे तेरा नाम लेकर धड़कती रही
चांदनी रात भर शबनम की बूंदे
तेरे लबो पर छिड़कती रही

कोई टूटे हुए तारो के संग तेरा नाम लेता रहा ..
मैं तुझे ,बस तुझे देखता रहा ....

यूँ ही ..मैं अब अपने मन के शहर में
तेरा इन्तजार कर रहा हूँ ...

तुम कब आओंगी जानां !!!!



5 comments:

  1. नमस्कार विजय जी सबसे पहले तो माफ़ी चाहता हूँ की बहुत दिन से आप के ब्लॉग पर नहीं आ पाया पर आज आया तो ये क्या देखा आते ही इतनी बेहतरीन रचना मै धन्य हो गया गुरुवर सुच में आप प्रेम के पंडित है हर लायन दिल को छू जाती है
    सपनो की साँसे तेरा नाम लेकर धड़कती रही
    चांदनी रात भर शबनम की बूंदे
    तेरे लबो पर छिड़कती रही
    सादर
    प्रवीण पथिक
    9971969084

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  2. uff! intzaar , intzaar aur sirf intzaar
    shayad yahi mohabbat ka sila hota hai

    ek bahut hi khoosorat nazm.........dil ko chhoo gayi. kuch panktiyan to lajwaab bani hain---------
    कोई ज़िन्दगी की एक खामोश पहर थी ..
    जब; मैं तेरे आगोश में खुद को खो बैठा था !!!

    यूँ ही ..मैं अब अपने मन के शहर में
    तेरा इन्तजार कर रहा हूँ ...

    in panktiyon ne to gazab kar diya...........waah!
    bahut hi sundar bhavon ki prastuti.

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  3. vijay ji

    bahut dino baad aapne apne andaaz mein likha hai........ummeed hai aage bhi aisa padhne ko milta rahega.

    shukriya.

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  4. aapki is post ko baar baar padhne ka man kar raha hai..........kai baar padh chuki hun........very touching.

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  5. ehsason ko sundar shabd diye hain.....bahut khoob....badhai...

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