मैं सोचता हूँ ,
कि
तुमसे मिलूँ,
और तुमसे जब मिलूँ तो ;
वो तुम्हारा या मेरा शहर न हो ..
कोई ऐसी अनजान सी जगह हो ...
जहाँ हमें कोई जानता न हो ,
पहचानता न हो...
सिवाय उन मेघो के,
जिनकी उम्मीदों से भरी हुई उड़ानों को ;
हम घास पर लेटकर ख़ामोशी से देखेंगे...
या फिर उन चिड़ियाओ के ,
जिनकी तेज लेकिन मधुर चहचाहट को
हम चुपचाप सुनेंगे ...
या फिर उस नदी की शांत बहती धारा के
जिसकी नीली तलहटी में
हम अपने अक्स देखेंगे ..
या फिर वहां मिलेंगे
जहाँ आकाश और धरती एक होती हो
शायद उसे क्षितिज कहते है ,
या फिर मिलेंगे ...
किसी पुरानी भुतहा हवेली में ...
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या फिर किसी पुरानी सी टूटी हुई नौका में ..
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या किसी चांदनी रात में तारो की छाँव में
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या फिर किसी पर्वत की शांत गुफा में
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या किसी समंदर की लहरों के भीतर
जहाँ सिर्फ हम हो
या फिर तुम्हारे मन के भीतर
जहाँ मैं रहू ,तुम्हारे संग ...
या फिर मेरे मन के भीतर ..
जहाँ तुम रहो मेरे संग
हम कहीं भी मिले ..
मुझे पता है की ;
तुम मेरा हाथ थामे रहोंगी ...
किसी जन्म के भूले बिसरे वादों को पूरा करने के लिए..
और मैं तुम्हारा हाथ थामे रहूँगा ..
समय को रोककर तुम्हे जानने के लिए ..
पता नहीं ,कौनसे अनुबंध है ये ..
क्या हम प्रेम की नयी परिभाषा को रच रहे है जानां !!!
कि
तुमसे मिलूँ,
और तुमसे जब मिलूँ तो ;
वो तुम्हारा या मेरा शहर न हो ..
कोई ऐसी अनजान सी जगह हो ...
जहाँ हमें कोई जानता न हो ,
पहचानता न हो...
सिवाय उन मेघो के,
जिनकी उम्मीदों से भरी हुई उड़ानों को ;
हम घास पर लेटकर ख़ामोशी से देखेंगे...
या फिर उन चिड़ियाओ के ,
जिनकी तेज लेकिन मधुर चहचाहट को
हम चुपचाप सुनेंगे ...
या फिर उस नदी की शांत बहती धारा के
जिसकी नीली तलहटी में
हम अपने अक्स देखेंगे ..
या फिर वहां मिलेंगे
जहाँ आकाश और धरती एक होती हो
शायद उसे क्षितिज कहते है ,
या फिर मिलेंगे ...
किसी पुरानी भुतहा हवेली में ...
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या फिर किसी पुरानी सी टूटी हुई नौका में ..
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या किसी चांदनी रात में तारो की छाँव में
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या फिर किसी पर्वत की शांत गुफा में
जहाँ सिर्फ हम हो ,
या किसी समंदर की लहरों के भीतर
जहाँ सिर्फ हम हो
या फिर तुम्हारे मन के भीतर
जहाँ मैं रहू ,तुम्हारे संग ...
या फिर मेरे मन के भीतर ..
जहाँ तुम रहो मेरे संग
हम कहीं भी मिले ..
मुझे पता है की ;
तुम मेरा हाथ थामे रहोंगी ...
किसी जन्म के भूले बिसरे वादों को पूरा करने के लिए..
और मैं तुम्हारा हाथ थामे रहूँगा ..
समय को रोककर तुम्हे जानने के लिए ..
पता नहीं ,कौनसे अनुबंध है ये ..
क्या हम प्रेम की नयी परिभाषा को रच रहे है जानां !!!
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
ReplyDeleteहम कहीं भी मिले ..
ReplyDeleteमुझे पता है की ;
तुम मेरा हाथ थामे रहोंगी ...
किसी जन्म के भूले बिसरे वादों को पूरा करने के लिए..
और मैं तुम्हारा हाथ थामे रहूँगा ..
समय को रोककर तुम्हे जानने के लिए ..
..बहुत ख़ूबसूरत...ख़ासतौर पर आख़िरी की पंक्तियाँ....
vk ji maan gaye aapko..
ReplyDeletelajwaab rachaa....
sundar
ReplyDeleteया फिर तुम्हारे मन के भीतर
ReplyDeleteजहाँ मैं रहू ,तुम्हारे संग ...
या फिर मेरे मन के भीतर ..
जहाँ तुम रहो मेरे संग
यहीं तो प्रेम आकार पाता है और यही तो प्रेम की पूर्णता है…………खूबसूरत भाव्।
पता नहीं ,कौनसे अनुबंध है ये ..
क्या हम प्रेम की नयी परिभाषा को रच रहे है जानां !!!
प्रेम की परिभाषा शायद आज तक कोई नही जान पाया इसीलिये रोज नयी परिभाषायें गढी जाती हैं मगर फिर भी कोई भी लफ़्ज़ों मे प्रेम को कब समेट पाया है………………प्रेम का आकाश तो अनंत है।
बहुत ही खूबसूरती से भावों को संजोया है………………दिल मे उतर गयी रचना।