Wednesday, September 30, 2009
छुअन
छुअन
ये कैसी कशिश है तेरे जिस्म की
ये छुअन कैसी है तेरे जिस्म की
क्या तुमने मेरी उखड़ी हुई साँसों को
अपने भीतर महसूस किया है
क्या तुमने अपने होठों से मेरी पीठ
पर अपना नाम लिखा है
क्या मैं वहां हूँ तुम्हारे साथ
जैसे तुम यहाँ हो मेरे साथ
क्या तुमने मुझे अपने जिस्म के साथ सहेजा है
अपने भीतर समेटा है
तुम्हारी जुल्फें यहाँ कैसी मेरे चहरे को ढकती हुई
तुम्हारी बहकती हुई साँसे मुझे बहका रही है
ये तुम्हारे हाथों की छुअन कैसी है मेरे जिस्म पर
ये जिस्म तुम्हारा मेरे जिस्म पर ......
ये छुअन तुम्हारी ....
क्या तुमने भी महसूस किया है मुझे
मेरी हाथों की छुअन
मेरे जिस्म की छुअन
तुम्हारे भीतर
ये कैसी आग है ,तुमने जो लगायी है
मैं जल रहा हूँ ...
ये छुअन तुम्हारी और मेरी ....
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bhavo ki gaharai me utarti hui .sundar rachana .
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