Saturday, October 16, 2010

ज़िन्दगी



क्या तुम्हारा नाम ज़िन्दगी है ...
किसी ज़िन्दगी के साए में तुम रहो .....
किसी नज़्म के अहसास में तुम रहो ....
किसी रात के उजाले में तुम रहो ...
क्या तुम्हारा नाम ज़िन्दगी है ...

सुबह की कोई किरण हो
या फिर सांझ की लालिमा
चाँद की चांदी में बिखरती जुल्फें
क्या ये कहती है मुझे की
क्या तुम्हारा नाम ज़िन्दगी है
 
यूँ ही मैं चलते चलते थक गया हूँ ..
क्या तुम मेरा सर का दुपट्टा बनोंगी ....
कल देखा तो सूरज की किरणे तुझ से मेरा रास्ता पूछ रही थी ..
क्या तुम्हारा नाम ज़िन्दगी है ...

मैं ज़िन्दगी के किस गली में तेरी राह देख रहा हूँ ....
तुम क्या जानो ....
लेकिन कल ही तो तुमने ;
मेरा हाथ पकड़कर मुझे ज़िन्दगी से रुबूरू करवाया था ...

सुनो ,क्या तुम्हारा नाम ज़िन्दगी है ...


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