Saturday, October 16, 2010

तुम कहाँ हो जांना ?


ज़िन्दगी के अनजाने राहों में ;
मैं अकेला ही चल रहा था कि
किसी सपने में मैंने तुम्हे पुकारा .....

और किसी खुदा के मेहर से
तुमने मेरी आवाज सुन ली !!!

सूरज जब डूब रहा था
तब मैं तुमसे मिला ....

फिर एक अजनबी रात के सफ़र में
मैंने तेरा हाथ थाम कर तुझे अपना कहा ..

और उसी चांदनी रात के 
झिलमिलाते हुए तारो की छांव  में
मैंने तुम्हारा चेहरा अपने हाथो में थाम कर
तुम्हे एक अहसास दिलाया की
ज़िन्दगी की हर ढलती हुई शाम में
तुम्हारा हाथ अपने हाथ में लेकर
मैं तुम्हे प्यार करूँगा !
तेरी मांग में मेरे सपनो का सिन्दूर होंगा ..
तेरे हाथो में मेरे नाम की मेहँदी होंगी
और मैं  कहूँगा की तुम मेरी हो ...

लेकिन जिस खुदा ने हमें मिलाया ,
उसी खुदा ने हमें ये श्राप भी दे दिया की
किसी किसी  ढलती हुई शाम में आंसू भी होंगे...
किसी किसी रात में तन्हाई की गूँज भी होंगी
और ज़िन्दगी के सफ़र में हम
ज्यादातर अकेले ही रहेंगे !!!

भाग्य के विधान  के आगे
मैं निशब्द  हूँ ;
निराश हूँ ;
रुका हुआ हूँ !!!

सुनो , मैं बहुत बरसो से तेरी याद में
ठहरा हुआ हूँ ;
जन्मो का प्यासा हूँ ;
तेरी छांव में जीवन की इस शाम को गुजारना चाहता हूँ .....
तुम कहाँ हो जांना ?

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