Wednesday, September 30, 2009

क्षितिज


क्षितिज

तुमने कहीं वो क्षितिज देखा है ,
जहाँ , हम मिल सकें !
एक हो सके !!

मैंने तो बहुत ढूँढा ;
पर मिल नही पाया ,

कहीं मैंने तुम्हे देखा ;
अपनी ही बनाई हुई जंजीरों में कैद ,
अपनी एकाकी ज़िन्दगी को ढोते हुए ,

कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
अपने प्यार को तलाशते हुए ;

कहीं मैंने हम दोनों को देखा ,
क्षितिज को ढूंढते हुए
पर हमने कभी क्षितिज नही मिला !

भला ,
अपने ही बन्धनों के साथ ,
क्षितिज को कभी पाया जा सकता है ,

पता नही ;
पर ,मुझे तो अब भी उस क्षितिज की तलाश है !
जहाँ मैं तुमसे मिल सकूँ ,
तुम्हारा हो सकूँ ,
तुम्हे पा सकूँ .
और ,
कह सकूँ ;
कि ;
आकाश कितना अनंत है
और हम अपने क्षितिज पर खड़े है

काश ,
ऐसा हो पाता;
पर क्षितिज को आज तक किस ने पाया है
किसी ने भी तो नही ,
न तुमने , न मैंने
क्षितिज कभी नही मिल पाता है

पर
हम
अपने ह्रदय के प्रेम क्षितिज पर
अवश्य मिल रहें है

यही अपना क्षितिज है !

1 comment:

  1. कहीं मैंने अपने आपको देखा ;
    अकेला न होकर भी अकेला चलते हुए ,
    अपनी जिम्मेदारियों को निभाते हुए ,
    अपने प्यार को तलाशते हुए .
    ati uttam .

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