कोई गली जो तेरे घर पहुंचती हो ;
और जिस पर चलने में तेरा खुदा मेरी मदद करे ...
क्या तुझे मालूम है ?
मैं उम्र भर उस गली में चलना चाहता हूँ ....
सोचता हूँ अक्सर मैं ;
नर्म रातो के अंधेरो में की तू कहीं है ,
मेरे आसपास मुझे छूते हुए और मुझे प्यार करते हुए
..और ये कहते हुए की ,मैं हूँ न.....
ये सोचता हूँ की तुम यहाँ होती तो ;
मुझे चूम लेती और मैं एक सपने में खो जाता ,
जहाँ तुम रहो और मैं रहूँ ...
एक ऐसा सपना ,जिसे खुदा ने बनाया हो ....
तुम्हारा नाम क्या है प्रेम.......
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
ReplyDeleteVijay aur kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!
ReplyDeleteVijay aur kavita ki jitani tarif ki jaye kam hai!
ReplyDeleteप्रेमरस मे डुबी आप की यह सुंदर रचना, धन्यवाद
ReplyDeleteachchhi lagi... sundar swapnil bhaav...
ReplyDeleteप्रेम को खोजती एक सुंदर प्रस्तुति...दशहरे की हार्दिक शुभकामनाएं।
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