मुझे न जाने क्या हुआ है
सकून के इंतजार में दिन गुजर जाता है
नींद के इंतजार में रात बीत जाती है
ज़रा तुम अपनी आंखो की नज़र तो भेजना
ज़रा तुम अपने जुल्फों का साया तो भेजना
सकून के इंतजार में दिन गुजर जाता है
नींद के इंतजार में रात बीत जाती है
ज़रा तुम अपनी आंखो की नज़र तो भेजना
ज़रा तुम अपने जुल्फों का साया तो भेजना
एक कोशिश कर लूँ
शायद मौत ही आ जाए…...
अजी यह क्या, आंखों की नज़र, जुल्फो का साया मांग कर मौत की चाहत? ऐसी कोशिश ना करे तो बेहतर है क्योंकि अभी तो आपको बहुत कुछ लिखना है। खैर.. रचना हमेशा की तरह बेहतर है। आपकी रचनाओं में अलग कसक है। चाहत है, इच्छा है, जाननए, समझने की मन्शा है, और एसा होना रचना के लिये फायदेमन्द होता है।
ReplyDeletemitr rachana to bahut achchhi hai .magar hamare ghar ka pata bhool gaye ,aate jaate rahiye to khoj khabar milti rahe .tyoharon ki wazah kafi vyastta ghiri hai .magar tippani ke karan judna ho jata hai ,aap to dosti karke dost ka khyaal nahi karate .
ReplyDeletefaslon ke silsilay kuchh aur huye aese ,shikaayat bankar galib ko gungunane lagenge ..
hamko unse hai wafa ki umeed
jo nahi jante wafa kya hai .
विजय जी आप ने कमाल की रचना लिख दी बधाई स्वीकार करें
ReplyDeletebehad sundar.
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